अनाथों के नाथ (दो सवैया छन्द) - आशुकवि रमेश कुमार

अनाथों के नाथ



आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी "चंचल" सुलतानपुर (उ.प्र.) भारत 


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तरूवर डारि अँट्यो खग एकु चित्त लगावत वो नन्दराई।।                          


निरखत नीचे शिकारी खड्यो जो साधि निशानु रह्यो खगराई।।                            


प्राननु आश नही जबु जानि पुकारि पर्यो तुरतै यदुराई।।                              


भाखत चंचल काव कहीसुमिरत खग के पर्यो सर्प देखाई।।1।।


                     


निशाना लगाई शिकारी खड्यो वहिका सर्पराज नही देखराई।।                        


सर्प डस्यो जबु पाँव शिकारी तौ बान लग्योहै बाजु के जाई।।                          


प्रान बच्योखग के तबही रिपु दुइनौ आपनि जान गँवाई।।                              


भाखत चंचल या यदुनन्दन  रैन दिना  प्रभु का जपो भाई ।।2।।   


 


कवि परिचय-


रमेश कुमार द्विवेदी "चंचल" (आशुकवि)


कार्यक्षेत्र- कृषि 


 


 


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