मैं और मेरी तनहाई (कविता) - विनय समाधिया

मैं और मेरी तनहाई



विनय समाधिया, दतिया (मध्य प्रदेश) भारत  


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मैं और मेरी तनहाई, अक्सर बातें करते हैं
एक दूजे पे हंसते दोनों, एक दूजे पे मरते हैं,


दोनों में होती गप्प सड़ाका, खूब लगाते हंसी ठहाका
भूखा मैं गर, वो भी भूखी, दोनों मिलकर करते फांका,
उसका अपनापन ही मुझको, इक अपना सा लगता है,
झूठे सारे रिश्ते नाते, सब सपना सा लगता है,
ना कोई उसका, ना ही मेरा, इसमें धीरज धरते हैं,
एक दूजे पे हंसते दोनों, एक दूजे पे मरते हैं,


दिल खोल मैं करता बातें, मगन वो होकर सुनती है,
मैं बुनता हूं उसके सपने, वो मेरे सपने बुनती है,
नहीं रूठती कभी वो मुझसे,उसमे ये अच्छाई है,
जो साथ हमेशा देती मेरा, केवल वो तनहाई है,
इक दूजे के साथी बनते, दोनों के दुःख हरते हैं
एक दूजे पे हंसते दोनों, एक दूजे पे मरते हैं,


कहते हैं सब पागल है वो, अपने में खोया रहता है,
खुद से ही बतियाता रहता, सोया सोया रहता है,
इस सोने में बड़ा मज़ा है, आराम बहुत तनहाई में,
मगन रहो बस अपने में ही,यही जीवन की सच्चाई है,
नहीं मैं भरता दम रिश्तों का, रिश्ते धोखा करते हैं,
एक दूजे पे हंसते दोनों, एक दूजे पे मरते हैं,


 


 


कवि परिचय-


विनय समाधिया, सेवढ़ा दतिया (मध्य प्रदेश)  
रुचि- गद्य व पद्य की समस्त प्रचलित विधाओं में सृजन व विविध पत्र पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन


उद्देश्य- हिंदी को लोकप्रिय राष्ट्रभाषा बनाना


 


 


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