पहचान कौन? (लघुकथा) - विजय कुमार शर्मा

पहचान कौन? 



विजय कुमार शर्मा, चण्डीगढ़, भारत 


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सरला को शिक्षा विभाग ने जब अध्यापिका नियुक्त कर दिया तो वह हर्षान्वित थी कि भगवान ने उसका चयन पावन-पुनीत कार्य के लिए किया है।इसलिए उसने निर्णय किया कि वह दुर्घटनावश अध्यापिका नहीं रहेगी।वह सुबह जल्दी स्कूल पहुंच जाती।बच्चों से मिलती,उन्हें गले लगाती ,उनकी साफ - सफाई का ध्यान रखती।किसके नाखून काटने वाले हैं,कौन नहाकर नहीं आयी,किसने चोटियां नहीं बनाई?....इत्यादि इत्यादि कार्यों का जिम्मा उसने स्वेच्छा से उठा रखा था।
              सब कुछ करने के बाद पांच मिंट का समय उसने   रजत की आन्तरिक दुनियां को पढ़ने के लिए ,उसके साथ नाश्ता करने के लिए रखा होता था।इसलिए तो वह नाश्ता स्कूल  आकर करती क्योंकि वह जानती थी कि रजत की मां को गुज़रे हुए दो वर्ष हो गए थे।पिता तो स्कूल भेजना भी स्कूल वालों पर एहसान से कम नहीं समझता था। रो-रोकर रजत की दोनों आँखों की ज्योति भी जा चुकी थी और डाॅक्टर भी हाथ खड़े कर चुके थे।नेत्र विशेषज्ञ का कहना था कि आँखों की नमी जा चुकी है हां कभी जीवन में यदि दुबारा कभी यह दिल से रोया तो हो सकता है इसकी रोशनी वापिस आ जाए।
             सरला रोज़ाना प्रयास करती पर मां के आघात से जड़ हुआ रजत अब इस वीरान में पाषाण ही तो था।पर फिर भी सरला एक अध्यापिका के रुप में उसे बहुत पसंद थी जिसे वह मन की आँखों से निहार सकता था।
               वर्ष बीतते गए ,स्कूल के बाद काॅलिज और संगीत में एम ए करने के बाद सिने जगत में घूम मचा दी।एक के बाद एक पिक्चर के संगीतकार के रुप में अपनी जगह बना ली।इधर मोबाईल भी आ चुका था और सोशल मीडिया के द्वारा मित्र मंडली भी इक्कठी हो चुकी थी।आज रजत देश का एक नाम था।सभी मित्र उससे मिलना चाहते थे।उन्होने उसे बिना बताए अपने पुराने स्कूल में 5 सितम्बर के मिलने का कार्यक्रम रख लिया।कोई जज हो गया था तो कोई अधिकारी,कोई विदेश चला गया था तो कोई व्यापारी।आज सभी से मिलकर सभी खुश हो रहे थे।स्कूल ने भी एक कार्यक्रम रखा था जिसमे उत्कृष्ट शिक्षण हेतु अध्यापको का सम्मान होना था।शिक्षा सचिव ने मंच पर बोलते हुए कहा कि शिक्षक अगर चाहे तो वह
कुछ भी कर सकता है ।मुझे गर्व है कि आज भी विभाग में ऐसे अध्यापक हैं । मैं उनका नाम  नहीं लूंगा वह परदे के पीछे से सीधे  आपको सम्बोधित करेंगी।आपको पहचानना है कि वह कौन है?
चारों ओर शांति छा गई।हर कोई आवाज सुनने के लिए बेताब हो गया।अध्यापिका ने बोलना शुरु किया....."मेरे प्यारे बच्चो.....रजत एकदम सीट से खड़ा हो चिल्लाने  लगा मां..मां...मां...मां ....उसकी दोनों आँखों से गंगा यमुना बह निकली थी....मां... मां...मां की आवाज़ सुनकर सरला भी पर्दे को पीछे धकेलकर.....दौड़ पड़ी थी।रजत...रजत....रजत....मां...मां....मां की आवाज़ें गूंज रही थी।हाल में सन्नाटा और रजत के जीवन में उजाला एकदम कौंध गया था। रजत जिसे आज तक सिर्फ मनकी आँखों से पहचान रहा था वह आज पहली बार सजल नेत्रों से सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ रचना...... मां अध्यापिका के दर्शन कर रहा था।

 


   


कवि परिचय-


विजय कुमार शर्मा

कार्यक्षेत्र- शिक्षक (हिन्दी, पंजाबी, अंग्रेजी)

शैक्षणिक योग्यता- स्नातक हिन्दी(आनर्स) स्नातकोत्तर(अंग्रेजी)

अभिरुचि- समसामयिक विषयों का अध्ययन उपरांत चिन्तन एवं लेखन। लघुकथा लेखन में विशेष रुचि।

 


 


 


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