अकेले में (कविता) - प्रवीन "पथिक"

अकेले में



प्रवीन "पथिक", बलिया (उ०प्र०) भारत 


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अकेलेपन की गहन-निशा में,


अनिमेष देखता हूॅं एक सपना कि,


डूब रहा हूॅं गहरी खोह में,


पाताल की गहराइयों में,


धॅंसता,निष्प्राण काया लिए,


बढ़ता जाता हूॅं घने अरण्य में,


चीड़ पर टंगी मेरी आत्मा,


याचना कर रही है, मुक्ति के लिए।


जड़वत शरीर, शिथिल मन,


क्षण-प्रतिक्षण मृत्यु के तरफ अग्रसर।


किसी विध्वंस महल के खंडहर में,


भटकती मेरी आत्मा,


हर एक कपाट से निकलती,


आंगन के भयानक स्थान पर,


पुनः लौट आती है।


जैसे ब्रह्माण्ड का कण-कण


शिथिल और बेजान,


समय की गति के समान


हृदय की गति कभी तीव्र,


कभी मंद पड़ जाती है।


मस्तिष्क में ऐसा अन्तर्द्वन्द,


जो चहारदीवारी की दीवारों से टकराती,


मस्तिष्क में असह्य पीड़ा को बढ़ाती,


मृत्यु के समक्ष, मुझे ला खड़ा कर देती है।


अचानक, बजती फोन की घंटी


औ मेरा श्वेदिक-शरीर, आभाषित करते हैं,


कि कितना अकेला हूॅं मैं।।


 


कवि परिचय-


प्रवीन "पथिक"


शिक्षा- बी०ए०(प्रतिष्ठा),एम०ए०(हिन्दी) (काशी हिन्दू विश्वविद्याल) यू०जी०सी० नेट (२०१९)
कार्य- अध्ययन-अध्यापन और स्वतन्त्र लेखन


 


 


 


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