जा रहा चुपके से सूरज का बदन पानी में (ग़ज़ल) - डॉ. आरती कुमारी

 जा रहा चुपके से सूरज का बदन पानी में


डॉ. आरती कुमारीमुज़फ़्फ़रपुर (बिहार) भारत 

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जा रहा चुपके से सूरज का बदन पानी में
क्या बुझेगी भला दिनभर की जलन पानी में,

शाम आँचल को पसारे हुए बैठी है अभी,
वो उतारेगा मुसाफत की थकन पानी में

रंग लायेगी ये मेहनत मेरी कुछ देर से ही
डूब जाए न मेरी सच्ची लगन पानी
 में 

जाने क्यों रूठ गई प्यास मेरे होंठो से
जब से महसूस हुई एक  चुभन पानी
 में

रातभर तारे उजाला सभी को बाटेंगे,
सुबह होते ही बिखेरेंगे किरन पानी
 में


 

परिचय-

डॉ. आरती कुमारी

शिक्षा - M.A(english),Ph.D(english), M.Ed.,NET (education)
*सम्प्रति- व्याख्याता
*प्रकाशन- कैसे कह दूं सब ठीक है ( काव्य- संग्रह)

देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जैसे ग़ज़ल के बहाने, सोच विचार, अभिनव इमरोज़, लहक, अदबी दहलीज़, अनंतिम, सेतु, गीत गागर, कविताम्बरा, अग्रिमान तथा कई ग़ज़ल विशेषांकों एवं कवयित्री विशेषांकों में कविताओं ,ग़ज़लों का प्रकाशन

सम्मान- चित्रगुप्त सामाजिक संस्थान , पटना द्वारा गोपी वल्लभ सहाय सम्मान 2013,   
बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा " उर्मिला कौल साहित्य साधना सम्मान'2018 
हिंदी - सेवी सम्मान 2018, निराला स्मृति संस्थान, डलमऊ द्वारा ' सरोज स्मृति सम्मान 2018 ,नवशक्ति निकेतन संस्था द्वारा 'शाद अज़ीमाबादी सम्मान 2020'

 

 

 

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